रायपुर: बदलती जीवनशैली, अनियमित दिनचर्या, असंतुलित खानपान और अत्यधिक अंग्रेज़ी दवाइयों के सेवन से आजकल महिलाओं और पुरुषों दोनों में हार्मोनल असंतुलन तेजी से बढ़ रहा है, जो गर्भधारण में एक प्रमुख बाधा बनता जा रहा है। ऐसे कई शारीरिक और मानसिक कारण होते हैं जो महिलाओं को गर्भधारण करने से रोक सकते हैं। आइए जानते हैं महिलाओं में पाई जाने वाली कुछ प्रमुख समस्याओं के बारे में जो गर्भधारण में रुकावट डालती हैं:
1. अनियमित मासिक धर्म (Irregular Periods)
पीरियड्स का समय पर न आना, 2-3 महीने तक गायब रहना
अत्यधिक पेट दर्द
अंडाणु (Egg) का सही रूप से न बन पाना
ऑव्यूलेशन (Ovulation) न होना
ये सभी गर्भधारण में बड़ी बाधाएं होती हैं।
2. पीसीओडी (PCOD)
महिलाओं में तेजी से बढ़ रही यह समस्या, जिसमें
चेहरे पर बाल आना
वजन का बढ़ना
अनियमित मासिक धर्म
शारीरिक गतिविधियों की कमी
मुख्य लक्षण होते हैं।
आयुर्वेद में इसे जड़ से ठीक किया जा सकता है। नियमित समय पर संबंध बनाने से गर्भधारण में सहायता मिलती है और हार्मोनल दवाओं की ज़रूरत नहीं पड़ती।
3. फैलोपियन ट्यूब ब्लॉकेज (Tubal Blockage)
अंडाणु को गर्भाशय तक पहुंचाने वाली ट्यूब्स में इंफेक्शन या रुकावट
कारण: टीबी, रूबेला, मम्प्स, मीजल्स जैसे बचपन के संक्रमण
4. फाइब्रॉइड (Fibroid) या एंडोमेट्रियोसिस (Endometriosis)
गर्भाशय में गांठ या सूजन
ब्लीडिंग की अनियमितता
मिसकैरेज का इतिहास
इन स्थितियों में भी गर्भधारण मुश्किल होता है।
5. थायरॉइड, डायबिटीज़, मोटापा
हाइपरएसिडिटी और अन्य मेटाबोलिक डिसऑर्डर भी गर्भधारण में रुकावट बनते हैं।
6. त्रिदोष असंतुलन (वात, पित्त, कफ)
आयुर्वेद के अनुसार जब ये दोष सामान्य स्थिति से ज्यादा या कम हो जाते हैं, तब गर्भधारण में समस्या होती है।
7. योनि रोग (Yoni Vyapat)
आयुर्वेद में बताए गए 20 प्रकार के योनि रोग, जैसे वामिनी—जिसमें वीर्य ठहरता नहीं और बाहर निकल जाता है—भी गर्भधारण को रोकते हैं।
आयुर्वेदिक समाधान: निदान, चिकित्सा और पंचकर्म
उत्तर वस्ति चिकित्सा
मासिक धर्म के 4-6वें दिन तक जब गर्भाशय खुला होता है, तब दवाओं (सिद्ध घी, तेल, कषाय) को गर्भाशय में दिया जाता है।
यह प्रक्रिया गर्भाशय को दोषमुक्त करती है, उसका pH संतुलित करती है और पोषण प्रदान कर ऑव्यूलेशन को बेहतर बनाती है।
अक्सर 2-3 चक्र में ही गर्भधारण संभव हो जाता है।
पंचकर्म थेरेपी
शरीर को शुद्ध कर त्रिदोष को संतुलित किया जाता है।
यह प्रक्रिया गर्भधारण की बाधाओं को दूर कर स्वस्थ संतान के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है।
Low AMH Level
महिलाओं में अंडाणुओं की संख्या जन्म के समय ही तय होती है।
यदि AMH (Anti-Müllerian Hormone) कम है, तो यह कम अंडाणु का संकेत है और शीघ्र गर्भधारण की आवश्यकता होती है।
(Disclaimer): ये लेख सामान्य जानकारी के लिए दिया गया है। bholuchand इसकी पुष्टि नहीं करता।