त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग नासिक: महाराष्ट्र के नासिक जिले के पास स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि पौराणिक इतिहास और अध्यात्म से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। गोदावरी नदी के तट पर स्थित यह शिव मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसकी विशेषता यह है कि यहां शिवलिंग स्वयंभू है — अर्थात् इसकी स्थापना किसी ने नहीं की, बल्कि यह धरती पर स्वयं प्रकट हुआ।
त्र्यंबकेश्वर से जुड़ी पौराणिक कथा
इस मंदिर से जुड़ी एक बेहद रोचक कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में ब्रह्मगिरी पर्वत पर महर्षि गौतम अपनी पत्नी देवी अहिल्या के साथ तपस्या करते थे। उनकी तेजस्विता और पुण्य से अन्य ऋषि ईर्ष्या करने लगे। एक षड्यंत्र के तहत उन पर गौहत्या का झूठा आरोप लगाया गया और प्रायश्चित के रूप में देवी गंगा को धरती पर लाने की शर्त रखी गई।
महर्षि गौतम ने तप करके भगवान शिव की आराधना की। उनकी गहन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती प्रकट हुए। जब वरदान मांगने का अवसर आया, तो ऋषि ने गंगा को ब्रह्मगिरी पर्वत पर लाने का निवेदन किया। देवी गंगा ने आने की स्वीकृति इस शर्त पर दी कि भगवान शिव भी वहीं वास करेंगे। तब शिवजी ने त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां विराजमान होने का वचन दिया और देवी गंगा, गौतमी नदी के रूप में वहां प्रवाहित हुईं, जिसे आज हम गोदावरी नदी के नाम से जानते हैं।
तीन देवताओं की एक साथ उपस्थिति
त्र्यंबकेश्वर मंदिर की एक अनोखी विशेषता यह है कि यहां शिवलिंग के रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश — तीनों देवताओं की एक साथ उपस्थिति मानी जाती है। गर्भगृह में एक छोटे गड्ढे में तीन छोटे शिवलिंग स्थित हैं, जिन्हें इन तीनों देवताओं का प्रतीक माना जाता है।

पर्वत, देवियां और रहस्य
त्र्यंबकेश्वर के पास तीन प्रमुख पर्वत स्थित हैं — ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगाद्वार। ब्रह्मगिरी को शिव का प्रतीक माना जाता है। नीलगिरी पर नीलांबिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है, जबकि गंगाद्वार पर देवी गंगा (गोदावरी) का मंदिर स्थित है। यहां एक रहस्यमयी जल स्रोत भी है, जहां से एक-एक बूंद जल शिवलिंग के पास गिरता रहता है और एक कुंड में इकट्ठा होता है।
कैसे पहुंचे त्र्यंबकेश्वर?
मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी शहर नासिक है, जो सड़क, रेल और हवाई मार्ग से भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। नासिक से त्र्यंबकेश्वर की दूरी लगभग 29 किलोमीटर है। वहां से टैक्सी, बस या अन्य लोकल साधनों द्वारा मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।