मध्य प्रदेश : इंदौर से लगभग 80 किलोमीटर दूर नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि अपने “ॐ” आकार के द्वीप और पौराणिक महत्व के कारण भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग है, जिसे देखने के लिए देशभर से लाखों श्रद्धालु हर साल यहां आते हैं।
धार्मिक मान्यता और विशेषता
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव यहां ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं और इसे “परमेश्वर लिंग” भी कहा गया है। मान्यता है कि ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से सभी कष्टों का नाश होता है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
यहां शिवलिंग “ॐ” के आकार की पहाड़ी पर स्थित है, जो इसे अद्वितीय बनाता है। दर्शन के बाद नर्मदा नदी का जल चढ़ाना अनिवार्य माना गया है, तभी पूजा पूर्ण मानी जाती है।
रहस्यमयी परंपरा: चौपड़ खेलते हैं शिव-पार्वती
स्थानीय मान्यता के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती रात को ओंकारेश्वर मंदिर में चौपड़ (शतरंज जैसा खेल) खेलते हैं। इसी वजह से हर शाम आरती के बाद मंदिर का गर्भगृह बंद कर दिया जाता है और चौपड़ बिछा दी जाती है। सुबह जब दरवाजे खोले जाते हैं तो चौपड़ की गोटियां बिखरी हुई मिलती हैं।
पौराणिक कथा: राजा मान्धाता और ओंकारेश्वर
प्रचलित कथा के अनुसार, राजा मान्धाता ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और उनके आग्रह पर यहीं विराजमान हो गए। तभी से यह स्थान “ओंकार मान्धाता” के नाम से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि राजा मान्धाता के वंशज आज भी यहां निवास करते हैं।
नर्मदा और लिंग की अद्भुत संगति
पौराणिक मान्यता है कि जब देवताओं ने राक्षसों से पराजित होकर भगवान शिव से सहायता मांगी, तो शिव ने ज्योतिर्मय ओंकार रूप में प्रकट होकर नर्मदा के तट पर लिंग रूप में विराजमान हुए। ब्रह्मा, विष्णु और रुद्रपुरी की उपस्थिति के कारण इस क्षेत्र को त्रिपुरी भी कहा गया है।
यहाँ नर्मदा नदी का जल लिंग से होकर बहता है और यह प्रवाह शिव की कृपा का प्रतीक माना जाता है। जब जल में बुलबुले उठते हैं, तो मान्यता है कि भगवान शिव प्रसन्न हैं।

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ऐतिहासिक महत्त्व
पेशवा बाजीराव द्वितीय ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
अहिल्याबाई होल्कर ने घाटों और मंदिर की संरचना को भव्य रूप दिया।
1063 ई. में उदयादित्य द्वारा मंदिर को समर्पित संस्कृत शिलालेख आज भी मौजूद हैं।
भैरवगण और दरियायनाथ की कथा
प्राचीन काल में यह क्षेत्र कालिका देवी के अनुयायियों भैरवगणों के अधीन था, जो तीर्थयात्रियों को परेशान करते थे। दरियायनाथ नामक संत ने इन पर नियंत्रण पाया और तब से यह तीर्थस्थल आम भक्तों के लिए सुरक्षित बन गया।
बाद में भील शासन रहा, जिसे 1195 ई. में राजा भरत सिंह चौहान ने हराया। आज भी उनके महल के अवशेष यहां मौजूद हैं।
कैसे पहुंचे ओंकारेश्वर?
हवाई मार्ग: नजदीकी एयरपोर्ट – इंदौर (78 किमी)
रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन – खंडवा
सड़क मार्ग: इंदौर और खंडवा से नियमित बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं।
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