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केदारनाथ धाम: नर-नारायण और पांडवों से जुड़ा है पांचवा ज्योतिर्लिंग, जानिए रहस्य और यात्रा मार्ग

उत्तराखंड: उत्तराखंड की पवित्र भूमि पर स्थित केदारनाथ धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पांचवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर उत्तराखंड के चारधाम यात्रा का भी अहम हिस्सा है और इसका संबंध नर-नारायण, पांडवों और आदि गुरु शंकराचार्य से जुड़ी धार्मिक कथाओं से है। हिमालय की गोद में स्थित यह शिवधाम हर साल लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनता है।

नर-नारायण की तपस्या से प्रसन्न हुए भोलेनाथ

पुराणों के अनुसार, बदरीवन में भगवान विष्णु के दो अवतार नर और नारायण ने तपस्या करते हुए पार्थिव शिवलिंग की पूजा की थी। उनकी अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने वहां प्रकट होकर वर मांगने को कहा। तब नर-नारायण ने यह वरदान मांगा कि शिव जी सदैव उस स्थान पर निवास करें ताकि सभी भक्त उनके दर्शन कर सकें। शिव जी ने यह वरदान स्वीकार कर लिया और वह स्थान ‘केदार क्षेत्र’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

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महाभारत काल से जुड़ी मान्यता

केदारनाथ धाम की एक और पौराणिक कथा महाभारत के पांडवों से जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों को जब अपने कौरव भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति पानी थी, तब वे भगवान शिव की आराधना करने के लिए केदार क्षेत्र आए। शिव जी ने उन्हें बैल (बेल) के रूप में दर्शन दिए। इसी क्षेत्र में पांडवों को शिव के दर्शन प्राप्त हुए थे।

केदारनाथ धाम
केदारनाथ धाम

शंकराचार्य द्वारा पुनर्निर्मित मंदिर

इतिहास के अनुसार, केदारनाथ मंदिर का पहला निर्माण राजा जनमेजय ने करवाया था। बाद में 8वीं से 9वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर में स्थापित शिवलिंग को ‘स्वयंभू’ माना जाता है, यानी वह स्वयं धरती से प्रकट हुआ है।

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मंदिर की विशेष संरचना और पूजन विधि

केदारनाथ मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है, जिसकी पृष्ठभूमि में बर्फ से ढके हिमालय की श्रृंखलाएं इसे और भी दिव्य बनाती हैं। मंदिर में मंडप और गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है। मंदिर परिसर के बाहर शिव जी के वाहन नंदी की प्रतिमा विराजमान है। यहां पूजा की परंपरा आज भी प्राचीन विधियों से की जाती है।
प्रातःकाल शिवलिंग को स्नान कराकर उस पर घी का लेप किया जाता है और फिर धूप-दीप व मंत्रों के साथ पूजा-अर्चना होती है। संध्या समय विशेष श्रृंगार कर भव्य आरती की जाती है।

तीर्थ यात्रा मार्ग और पहुंचने का तरीका

केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए पहले श्रद्धालुओं को हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून जाना होता है, जहां से बस या टैक्सी द्वारा सोनप्रयाग या गौरीकुंड तक पहुंचा जा सकता है।
गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक का करीब 16 किलोमीटर लंबा रास्ता पैदल, पालकी या घोड़े के माध्यम से तय किया जाता है। यात्रा के दौरान अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य और भक्ति भाव से परिपूर्ण वातावरण यात्रियों को अलौकिक अनुभव प्रदान करता है।

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